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द्वेष और क्षति

आत्म-द्वेषाद् भवेनम्रुत्युः, पर-द्वेषाद् धन-क्षयः |
राज-द्वेषाद् भवेन्नाशो, ब्रह्म-द्वेषाद् कुल-क्षयः ||

आपने  साथ द्वेष करने से मृत्यु होती है | दूसरे के साथ द्वेष करने से धन का क्षय होता है | राज्य के साथ द्वेष करने से अपना नाश होता है | ज्ञान के साथ द्वेष करने से कुल का नाश होता है |

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अमीरी और गरीबी मे फर्क

अमीरी ले जाती है जेवर की दुकान पर, और गरीबी कान छिद्वती है, एक टिन का पहनने के लिये .  फूटपथ पर सो जाते हैं अखबर बिछकर मजदुर कभी नींद की गोली नहीं खाते दौलत है बेशुमार मुक्कदर को क्या कहें है मखमली बिस्तर मगर हम सो नहीं पाते